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पुण्य पाप के फल यथा समय मिलते हैं- मुनिराज श्री राजतचंद्र विजयजी म.सा.

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झाबुआ। राकेश पोद्दार। नगर संवाददाता। धर्मसभा को संबोधित करते हुएपूज्य आचार्य श्री ऋषभचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा.के शिष्य मधुरवक्ता मुनिराज श्री राजतचंद्र विजयजी म.सा. ने कहां पुण्य का फल या धर्म करनी करने का फल व्यक्ति को तुरंत चाहिये, यदि कर्मसत्ता यह कह दे की तेरे पाप का फल भी तुझे तत्काल देता हूं तब आप के पावो तले जमीन खिसक जायेगी । पुण्य पाप के फल यथा समय मिलते हैं। संसार के जगत का नियम है फुलों के साथ कांटे दीप के साथ अंधरा होता ही है वैसे ही सुख के साथ दुख होता ही है । ’सुख में ज्यादा प्रसन्न नहीं और दुख में परेशान नहीं होना चाहिए’। ’मानव को सभी चिजें पुनः मिल जाएगी सिवाय समय के।’ समय एक बार गया सो गया पुनः नहीं आयेगा। ’भीमसेन चरित्र की करुण कथा एक ग्रंथ न होकर आइना ही है’ । जो उसे देखेगा उसे अपना ही स्वरूप नजर आयेगा। ’प्राचीन चरित्र ग्रंथ जीवन निर्माण की कला सिखाने में आधार भूत होते हैं’। चाहे रामायण महाभारत हो या भीमसेन चरित्र सभी मे व्यक्तित्व निर्माण व सुख दुख को सहने की शक्ति मिलती है । मुनिश्री के मुखारबिंद से निरंतर एक घंटा जिनवाणी का शंखनाद किया जा रहा है। जिसका रसापान कर जीवात्मा आनंद की अनुभूति कर रहे हैं। 12 अक्टूबर से प्रारंभ होने वाली श्री सिद्धचक्र नवपद औलीजी की पत्रिका का विमोचन किया गया । सर्वप्रथम मुनि श्री ने वासक्षेप किया । उसके पश्चात समाजरत्न चातुर्मास समिति अध्यक्ष सुभाषचंदजी कोठारी मनोहरजी छाजेड़ धर्मचंदजी मेहता शेलेशजी शाह मुकेशजी रुनवाल सुनिलजी राठोर हेमेन्दजी बाबेल राकेशजी मेहता उत्कर्षजी कोठारी रोनक व तपन शाह ने विमोचन किया। वर्धमान तप की औलीजी का पाया 1 अक्टूबर से प्रारंभ होगा। उसमें ग्यारा दिवसिय आयंविल का लाभ कमलाबाई कोठारी की भावना से समाजरत्न सुभाषजी कमलेशजी कोठारी को प्राप्त हुआ है। अमित सकलेचा को गौतमस्वामी की आरती का लाभ प्राप्त हुआ ।