भोपाल। कानून-व्यवस्था का मुद्दा हो या आम जनजीवन को सहूलियत-सेवा की बात, सरकार इनमें कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं करेगी। कर्मचारियों से लेकर शीर्ष अधिकारियों के बेहतरीन कार्यों की सराहना होगी, लेकिन लापरवाह अधिकारियों और कर्मचारियों को सेवा में भी नहीं रखा जाएगा। ऐसे अधिकारियों-कर्मचारियों पर सरकार की कार्रवाई तलवार लटक गई है। मुख्यमंत्री सचिवालय ने इस पर काम शुरू कर दिया है। सरकार ने तय किया है कि पूरे प्रदेश में अब ऐसे कर्मचारियों की पहचान की जाएगी, जो आम जनता को राहत देने के बजाए टाल-मटौली करते हैं। सुशासन की राह में रोड़ा बनने वाले ऐसे कर्मचारियों के खिलाफ विधिवत जांच कर उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति के दायरे में लाया जाएगा। इसके लिए सरकार 20-50 के नियम यानी जिसकी 20 साल की सेवा हुई है या 50 साल की उम्र को कठोरता के साथ लागू करेगी। इसके लिए अब कलेक्टर और विभाग प्रमुख को जिम्मेदार बनाया जाएगा।
मंत्रालय में उच्च स्तर पर चल रहे विचार विमर्श में यह बात भी सामने आई है कि सीएम हेल्पलाइन सहित अन्य शिकायत वाले फोरम में जिनकी गंभीर शिकायत आती हैं, उन्हें चिह्नित करके अलग से जांच कराकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए। इसी तरह पुलिस अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ भी अब शिकायतों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी। खासतौर से जिन पुलिसकर्मी के खिलाफ रिश्वत लेने या किसी भी तरह के अपराध में शामिल होने के तथ्य मिलेंगे, उसके खिलाफ बर्खास्तगी की कार्रवाई की जाएगी। सरकार के खुफिया तंत्र ने कर्मचारियों-अधिकारियों के कामकाज पर नजर रखने के निर्देश दिए हैं। जिनकी कई माध्यमों से शिकायत मिलेगी, उन पर कार्रवाई होनी तय है।
आइएएस अफसर एमके सिंह को दे चुके अनिवार्य सेवानिवृत्ति
20-50 के फार्मूले के तहत प्रदेश के आइएएस अधिकारी एमके सिंह को राज्य सरकार की सिफारिश पर केंद्र सरकार अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे चुकी है। इसी तरह आइपीएस अधिकारी डा. मयंक जैन को भी सेवानिवृत्त किया जा चुका है। भ्रष्टाचार के मामले में घिरे जिला खनिज अधिकारी प्रदीप खन्ना को भी सरकार अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे चुकी है।