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कलियुग में श्रीकृष्ण का अवतार हैं श्री खाटू श्याम जी… मंदिर में भक्त क्यों चढ़ाते हैं निशान? जानिए

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खाटू श्याम जी का मंदिर अब राजस्थान में ही नहीं बल्कि समूचे भारत में इसकी ख्याति फैल चुकी है। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित बाबा श्याम के मंदिर पर लाखों लोग दर्शन के लिए आते हैं। श्याम बाबा को भगवान कृष्ण का कलियुगीन अवतार माना जाता है और उनके धड़ विहीन शीश की ही पूजा होती है। खाटू श्याम धाम का फाल्गुन मेला काफी प्रसिद्ध है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि इस मेले का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। ऐसा माना जाता है कि खाटू बाबा के दर्शनमात्र से ही श्रद्धालुओं के जीवन के सारे कष्ट मिट जाते हैं।

 

श्री खाटू श्याम बाबा जी, पवित्र जल कुंड ( सीकर, राजस्थान )

 

खाटू श्याम बाबा को कलियुग में श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। उनकी कहानी महाभारत काल से आरंभ होती है।
महान पांडव भीम के पुत्र घटोतकच्छ व नाग कन्या मौरवी के पुत्र बर्बरीक बचपन से ही बहुत वीर व पराक्रमी थे। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उनसे तीन अभेद वाण प्राप्त किए। अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया। बर्बरीक ने कौरवों व पांडवों के बीच हुए महाभारत युद्ध में सम्मलित होने की इच्छा जताई और मां से आशीर्वाद मांगा। इस पर मां ने हारे पक्ष का साथ देनेे का वचन मांगा। वचन देने के बाद वह तीन वाण व धनुष के साथ नीले घोड़े पर सवार होकर युद्ध के लिए निकल पड़े। सर्वव्यापी भगवान श्रीकृष्ण ने यह देखा तो उन्होंने ब्राह्मण वेश धारण कर बर्बरीक को रास्ते में रोक लिया। तीन बाण से युद्ध में शामिल होने की बात सुनकर भगवान ने उनकी हंसी उड़ायी और चुनौती दी कि वह जिस पीपल पेड़ के नीचे खड़े हैं, उसके सभी पत्तों को बाण से भेदकर दिखाओ तो जानें। इस पर बर्बरीक ने भगवान का स्मरण कर बाण छोड़ा। बाण सभी पत्तों का भेदन करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण के पैरों के चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता भगवान ने पैर के नीचे दबा रखा था। भगवान के पूछने पर बर्बरीक ने बताया कि युद्ध में वह पराजित पक्ष का साथ देगा। भगवान जानते थे कि कौरव हार रहे हैं। अगर बर्बरीक ने साथ दिया तो परिणाम बदल जाएगा। इस पर भगवान ने बर्बरीक से दान मांगा। बर्बरीक ने ब्राह्मण से अपने वास्तविक स्वरूप में आने को कहा। श्री कृष्ण की जानकारी पर बर्बरीक ने उनसे विराट रूप के दर्शन की इच्छा प्रकट कीतो भगवान ने अपना रूप दिखाया। भगवान ने बर्बरीक को समझाया कि युद्ध भूमि की पूजा के लिए वीर क्षत्रिय के शीश की जरूरत है। इस पर बर्बरीक ने युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की और अपना शीश दान कर दिया। भगवान ने शीश को युद्ध भूमि में पहाड़ी पर स्थापित कर दिया। बर्बरीक का सिर महाभारत युद्ध का साक्षी बना। श्री कृष्ण वीर बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न हुए और वरदान दिया कि कलियुग में श्याम नाम से जाने जाओगे। बाबा खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में है।

 

क्यों चढ़ाया जाता है बाबा को निशान

सनातन संस्कृति में ध्वजा विजय की प्रतीक मानी जाती है। श्याम बाबा द्वारा किए गए बलिदान शीश दान के लिए उन्हें निशान चढ़ाया जाता है। यह उनकी विजय का प्रतीक माना जाता है क्योंकि उन्होंने धर्म की जीत के लिए दान में अपना शीश ही भगवान श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था। निशान केसरी, नीला, सफेद, लाल रंग का झंडा होता है। इन निशानों पर श्याम बाबा और भगवान कृष्ण के फोटो लगे होते है। कुछ निशानों पर नारियल और मोरपंखी भी सजी होती है। आजकल कई भक्तों द्वारा सोने और चांदी के भी निशान श्याम बाबा को अर्पित किये जाते हैं।

निशान यात्रा में नंगे पांव चलना सबसे उत्तम माना जाता है। अपना निशान प्रभु के चरणों मे समर्पित करते हुए बाबा की असीम कृपा की प्रार्थना करनी चाहिए।