नई दिल्ली : सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों को बधाई दी। उन्होंने कठिन समय में देश के छात्रों के भविष्य के प्रति शिक्षकों के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि आज शिक्षक पर्व के अवसर पर कई नई योजनाएं शुरू की गई हैं। ये महत्वपूर्ण भी हैं, क्योंकि देश इस समय आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और आजादी के 100 साल बाद भारत कैसा होगा, इसके लिए नए संकल्प ले रहा है। प्रधानमंत्री ने महामारी की चुनौती का सामना करने के लिए छात्रों, शिक्षकों और पूरे शैक्षणिक समुदाय की प्रशंसा की और उनसे कठिन समय का मुकाबला करने के लिए विकसित की गयी क्षमताओं को और आगे बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “यदि हम परिवर्तन के दौर में हैं, तो सौभाग्य सेहमारे पास आधुनिक और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी है।“
प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण और उसके क्रियान्वयन में हर स्तर पर शिक्षाविदों, विशेषज्ञों, शिक्षकों के योगदान की सराहना की। उन्होंने सभी से इस भागीदारी को एक नए स्तर पर ले जाने और इसमें समाज को भी शामिल करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा क्षेत्र में ये बदलाव न केवल नीति आधारित हैं बल्कि भागीदारी आधारित भी हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के साथ ‘सबका प्रयास’ के देश के संकल्प के लिए ‘विद्यांजलि 2.0’ एक मंच की तरह है। इसके लिए समाज में, हमारे निजी क्षेत्र को आगे आना होगा और सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने में योगदान देना होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को कहा कि सामूहिक प्रयास हमारी परम्परा का हिस्सा रहा है और पिछले छह-सात वर्षों में जनभागीदारी से बड़े -बड़े काम हुए हैं जो अब राष्ट्रीय चरित्र बनता जा रहा है।
श्री मोदी ने शिक्षक पर्व समारोह के दौरान शिक्षकों, छात्रों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि सामूहिक मंथन से राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में मदद मिली है। सबके प्रयास से देश के संकल्प को नई गति मिलेगी। पिछले छह-सात वर्षों में जनभागीदारी से ऐसे-ऐसे काम हुए हैं, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती है। जनभागीदारी की वजह से स्वच्छता समेत बड़े-बड़े काम हुए हैं और यह अब राष्ट्रीय चरित्र बनता जा रहा है।
उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले शिक्षकों को बधाई देते हुए कहा, “आपने कोरोना संकट के कठिन समय में विद्यार्थियों के भविष्य के लिए जो प्रयास किये, वह सराहनीय हैं। कोरोना महामारी के दौरान डेढ़-दो साल बाद स्कूल खुलने के बाद आज विद्यार्थियों के चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान और चमक है। लम्बे समय बाद स्कूल जाना दोस्तों से मिलना एक अलग आनंद देता है लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करना भी आवश्यक है।
प्रधानमंत्री ने इस मौके पर पांच पहलों की भी शुरुआत की जिनमें 10,000 शब्दों का भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश, टॉकिंग बुक्स (नेत्रहीनों के लिए ऑडियो बुक), सीबीएसई का स्कूल गुणवत्ता आकलन एवं मान्यता ढांचा (एसक्यूएएएफ), निपुण भारत के लिए शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम और स्कूलों विकास के लिए शिक्षा स्वयंसेवियों, दाताओं और ‘सीएसआर’ दानकर्ताओं की सुविधा के लिए विद्यांजलि पोर्टल शामिल है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि किसी भी देश की प्रगति के लिए शिक्षा न केवल समावेशी होनी चाहिए बल्कि समान होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नेशनल डिजिटल आर्किटेक्चर अर्थात एन-डियर शिक्षा में असमानता को खत्म करके उसे आधुनिक बनाने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि जैसे यूपीआई इंटरफेस ने बैंकिंग सेक्टर को क्रांतिकारी बनाने का कार्य किया है, वैसे ही एन-डियर भी सभी विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के बीच ‘सुपर-कनेक्ट’ के रूप में कार्य करेगा। उन्होंने कहा कि देश टॉकिंग बुक्स और ऑडियोबुक जैसी तकनीक को शिक्षा का हिस्सा बना रहा है।
स्कूल क्वालिटी असेसमेंट एंड एश्योरेंस फ्रेमवर्क (एस.क्यू.ए.ए.एफ), जिसे आज प्रारंभ किया गया, यह पाठ्यक्रम, शिक्षाशास्त्र, मूल्यांकन, बुनियादी ढांचे, समावेशी प्रथाओं और शासन प्रक्रिया जैसे आयामों में एक सामान्य वैज्ञानिक ढांचे की अनुपस्थिति की कमी को दूर करेगा। एसक्यूएएएफइस असमानता को दूर करने में भी मदद करेगा।
उन्होंने कहा कि तेजी से बदलते इस युग में हमारे शिक्षकों को भी नई व्यवस्थाओं और तकनीकों के बारे में शीघ्रता से सीखना होगा। उन्होंने कहा कि देश ‘निष्ठा’ प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से अपने शिक्षकों को इन्हीं परिवर्तनों के लिए तैयार कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के शिक्षक न केवल किसी वैश्विक मानक पर खरे उतरते हैं, बल्कि उनके पास अपनी विशेष पूंजी भी होती है। उनकी यह विशेष पूँजी, विशेष शक्ति उनके भीतर के भारतीय संस्कार हैं। उन्होंने कहा कि हमारे शिक्षक अपने काम को केवल पेशा नहीं मानते हैं, उनके लिए शिक्षण एक मानवीय संवेदना और एक पवित्र नैतिक कर्तव्य है। प्रधानमंत्री ने कहा इसीलिए हमारे देश में शिक्षक और बच्चों के बीच केवल पेशेवर संबंध नहीं होते, बल्कि एक पारिवारिक रिश्ता होता है और यह रिश्ता जीवन भर के लिए होता है।
उल्लेखनीय है कि शिक्षा मंत्रालय शिक्षकों के अमूल्य योगदान को मान्यता देने और नई शिक्षा नीति 2020 को आगे बढ़ाने के लिए पांच से 17 सितंबर के बीच शिक्षक पर्व मना रहा है।