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Lahar Vidhan Sabha Seat: लहार सीट पर गोविंद सिंह का दबदबा, BJP कभी नहीं ढहा सकी ये किला | Lahar Assembly Vidhan Sabha Seat madhya pradesh state general election 2023 BJP Congress

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लहार सीट पर गोविंद सिंह का दबदबा, BJP कभी नहीं ढहा सकी ये किला

मध्य प्रदेश के भिंड जिले की लहार सीट की अपनी राजनीतिक खासियत है. यह सीट प्रदेश की राजनीति में खासा रुतबा रखती है. एमपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविंद सिंह पिछले 33 सालों से लगातार लहार सीट से विधायक हैं. गोविंद सिंह को चुनौती देने की बीजेपी की हर कोशिश नाकाम रही है.

गोविंद सिंह पहली बार जनता दल के टिकट पर चुने गए. फिर इसके बाद वह लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते चले आ रहे हैं. इस तरह से वह चंबल की इस विधानसभा के अजेय विधायक बन गए. विधानसभा में उनका नाम इतना बड़ा हो गया है कि उनकी ही पार्टी में उनके मुकाबले का कोई दूसरा नेता नहीं है.

कितने वोटर, कितनी आबादी

2018 के विधानसभा चुनाव में लहार सीट पर कुल 22 उम्मीदवारों ने अपनी चुनौती पेश की थी, लेकिन यहां पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था. कांग्रेस के डॉक्टर गोविंद सिंह को 62,113 वोट मिले तो बीजेपी के रसाल सिंह के खाते में 53,040 वोट आए. तीसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के अंबरिश शर्मा को 31,367 वोट मिले. गोविंद सिंह को 9,073 मतों के अंतर से जीत हासिल हुई.

तब के चुनाव में लहार सीट पर कुल 2,40,172 वोटर्स थे जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,33,592 थी जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 1,06,577 थी. इसमें कुल 1,54,500 (64.5%) वोट पड़े. जबकि NOTA के पक्ष में 345 (0.1%) वोट आए.

कैसा रहा राजनीतिक इतिहास

लहार सीट प्रदेश से उन विधानसभा सीटों में से एक है जिसे जीतना भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. उसे पहली और आखिरी 1985 में जीत मिली थी. फिर इसके बाद यहां से जीतना उसके लिए सपना ही रह गया है. गोविंद सिंह 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी हुए. फिर इसके बाद कांग्रेस में आ गए और फिर से यहां लगातार जीत रहे हैं.

लहार सीट से लगातार चुनाव जीतने वाले गोविंद सिंह न केवल ग्वालियर-चंबल अंचल बल्कि अब पूरे प्रदेश के बड़े नेता बन गए हैं. उसी के बलबूते कुछ महीने पहले ही मध्य प्रदेश की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनाए गए. लहार विधानसभा उत्तरी मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश से सटी हुई विधानसभा है.

सामाजिक-आर्थिक ताना बाना

इस विधानसभा में क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर ही है. इसके अलावा पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के वोटरों की बारी आती है. बीजेपी ने डॉक्टर गोविंद सिंह को कई बार हराने की कोशिश की, लेकिन हर बार चुनाव जीतने में सफल हो जाते हैं. 2018 के चुनाव में भी उनके सामने बीजेपी ने पूर्व विधायक रसाल सिंह को उतारा, लेकिन चुनाव हार गए. इस बार भी विधानसभा से केवल गोविंद सिंह का नाम ही चुनाव लड़ने के लिए चर्चा में है हालांकि वह एक दो बार चुनाव न लड़ने की घोषणा भी कर चुके हैं.

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लहार क्षेत्र सिंध नदी से रेत के व्यापक अवैध उत्खनन के लिए जानी जाती है. कई बार विपक्ष के लोगों द्वारा अवैध उत्खनन के आरोप विधायक गोविंद सिंह पर भी लगाए जा चुके हैं. लहार विधानसभा गोविंद सिंह के अलावा यहां के रावतपुरा धाम के लिए भी जानी जाती है और रावतपुरा धाम हनुमान मंदिर के लिए और यहां के महंत रवि शंकर दास के कारण प्रसिद्ध का चुका है. यहां हर साल कम से कम एक बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं.

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भौगोलिक दृष्टि से यह विधानसभा मध्य प्रदेश के दतिया और उत्तर प्रदेश के जालौन जिले से जुड़ी हुई है. विधानसभा में डॉक्टर गोविंद सिंह के बाद राजनीतिक विरासत संभालने के लिए उनके पुत्र अमित सिंह और उनके भतीजे अनिरुद्ध सिंह कतार में खड़े हैं.

इनपुट- Ganesh Bhardwaj