कानून के जरिए व्यक्तियों को इस तरह के नियंत्रण को बनाए रखने में सक्षम बनाना चाहिए। एक व्यक्ति का अपने नाम पर पूरा नियंत्रण होना चाहिए। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने कही। दरअसल हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने प्रमाणपत्रों में सुधार या परिवर्तन दर्ज करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए है। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने सीबीएसई को परिणाम प्रकाशित करने से पहले रिकॉर्ड में अपने नाम को सही करने के लिए लगाई गई शर्तों को ‘अत्यधिक और अनुचित’ घोषित करते हुए उन उपनियमों में संशोधन करने के निर्देश दिए हैं।
किसी की पहचान के नियंत्रण का अधिकार केवल व्यक्ति के पास
अदालत ने सीबीएसई के उपनियमों की वैधता पर सवाल उठाने वाली 22 याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा कि किसी भी शैक्षिक मानकों के रखरखाव से संबंधित कोई भी बोर्ड अपने छात्रों की पहचान को प्रभावित करने की शक्ति का दावा नहीं कर सकता है। किसी की पहचान को नियंत्रित करने का अधिकार व्यक्ति के पास रहना चाहिए। यह जरूर है कि उचित प्रतिबंधों के अधीन यह अधिकार होना चाहिए।
जन्मतिथि और नाम के लिए महत्वपूर्ण है यह प्रमाणपत्र
सरकारी दस्तावेजों के लिए आवेदन करते समय नाम और जन्मतिथि जैसे विवरणों के लिए इसका उपयोग किया जाता है। सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में नौकरियों के लिए आवेदन में इसका इस्तेमाल होता है। सीबीएसई ने खुद ही कई बार अपने प्रमाणपत्रों के महत्व और आधिकारिक मूल्य पर तर्क दिया है। ऐसी परिस्थितियों में अशुद्धि को बदलने से इनकार करना छात्र के भविष्य की संभावनाओं के लिए घातक हो सकती है।
प्रमाणपत्र का उपयोग केवल शैक्षिक उद्देश्यों तक ही सीमित नहीं
कहा कि बोर्ड का दायित्व है कि वह नाम सुधार के लिए अतिरिक्त प्रशासनिक बोझ उठाए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गलत प्रमाणपत्र के कारण छात्रों को अवसर खोने की आशंका रहती है। बोर्ड द्वारा जारी प्रमाणपत्रों की उपयोगिता अब शैक्षिक उद्देश्यों तक ही सीमित नहीं है। इसके जरिए सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति भी होती है।