Shajapur: शाजापुर से 8 किलोमीटर दूर दक्षिण में करेड़ी में कनकावती मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से भक्त मां के दर्शन को आते हैं. कहा जाता है कि माता के दर्शन और पूजन से ही भक्तों को संकटों और दरिद्रता व गरीबी से मुक्ति मिल जाती है.
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शाजापुर: आज से शारदीय नवरात्रि की शुरूआत हो गई है. माता के भक्त इन 9 दिनों में पूरी श्रद्धाभाव से मां भगवती की भक्ति में लीन हो जाते हैं. इस दौरान श्रद्धालू प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर जाकर देवी का आर्शीवाद लेते हैं. इन्ही में से एक कनकावती (कनकेश्वरी) मंदिर है. ये मंदिर बेहद प्राचीन है मान्यता है कि महाभारतकाल से पूर्व मंदिर की स्थापना कर्ण ने की थी. शाजापुर से 8 किलोमीटर दूर दक्षिण में करेड़ी में कनकावती मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से भक्त मां के दर्शन को आते हैं. कहा जाता है कि माता के दर्शन और पूजन से ही भक्तों को संकटों और दरिद्रता व गरीबी से मुक्ति मिल जाती है
ये मंदिर केवल चमत्कारों का ही स्थान नहीं है, बल्कि आसपास के कई किलोमीटर का पूरा हिस्सा धार्मिक संपदा से भरा हुआ है. यहां खुदाई करने पर शिवलिंग के साथ कुंडली मारकर बैठै सांप की काले पत्थरों की प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं. ऐसी ही कई शिवलिंग और सांप प्रतिमाएं मंदिर परिसर मे रखी हुई नजर भी आती हैं.
सिंधिया काल से चली आ रही है मेले की परंपरा
हर साल यहां मेले का आयोजन किया जाता है. इस बार रंगपंचमी यानि 12 मार्च के बाद मेले का आयोजन किया गया था. इस चार दिवसीय मेले के लिए मां कनकावती देवी मंदिर में दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धलू पहुंचे थे. मेले के दौरान कई तरह के आयोजन भी किए गए थे. बता दें कि सिंधिया शासनकाल से यहां रंगपंचमी के बाद आने वाले पहले मंगलवार से मेला लगाने की परंपरा चली आ रही है. जो आज भी कायम है. जैसे-जैसे समय बढ़ता जा रहा है ये मेला विस्तृत रूप लेता जा रहा है. शुरुआत में मेला दो दिनों तक चलता था, फिर तीन दिन और अब चार दिन का हो गया है.
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इस मेले का लोगों में अलग ही उत्साह होता है. यहां आसपास के अनेक गांवों सहित उज्जैन, शाजापुर, शुजालपुर, सीहोर, राजगढ़, इंदौर आदि से बड़ी संख्या में श्रद्धलु पहुंचते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि मंदिर परिसर के आस पास 20 किलोमीटर के दायरे में कहीं भी जमीन खोदने पर शिवलिंग और कुंडली धारी सांप की मूर्ति मिलती है. पुजारी जगदीश नाथ के अनुसार कुएं अथवा अन्य किसी कार्य के लिए जमीन खोदने पर शिवलिंग जरूर निकलता है.
मां की एक भुजा में आज भी जल स्वरूप में निकलता है अमृत
माता के चमत्कारी स्वरूप के चलते महाराजा विक्रमादित्य के काल में भी करेड़ी का विशेष महत्व था. परमारकाल में राजा भोज ने अपने शासनकाल में करेड़ी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. पुजारी जगदीश नाथ ने बताया कि मां कनकावती देवी की आठ फीट की चैतन्य प्रतिमा है. मुंड की माला धारण किए मां की अष्टभुजा है और एक भुजा में आज भी जल स्वरूप में अमृत निकलता है. यह अमृत आखिर कहां से आता है यह भी रहस्य है.