झाबुआ। राकेश पोद्दार। नगर संवाददाता। अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत के द्वारा प्रांत स्तरीय संस्मरण सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित अतिथि उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत व कला अकादमी निदेशक एवं जयंत भिसे ने उद्बोधन में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा संस्मरण सुनना और सुनाना अपने आप में प्रशिक्षण वर्ग के समान है।हमारी भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को मानती है और पूरे विश्व में एक पारस्परिक सद्भाव और प्रेम के का संदेश देती है हमारी संस्कृति बहुत ही विशिष्ट एवं निराली संस्कृति है जो अपना विश्व में एक उच्च स्थान रखती है। एक प्रकार से संस्मरण कला आत्मकथा का संक्षिप्त स्वरूप है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष विख्यात उपन्यासकार शरत् पगारे ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्मरण किसी भी व्यक्ति के जीवन की स्मृतियों का एक इतिहास होता जिसे वह जीवन के मधुर और कटु स्मृतियों को संस्मरण के रूप में कलमबद्ध कर संजोकर रखता है।जो जीवनभर उसका साथ देते हैं । विशिष्ट अतिथि साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने कहा कि संस्मरण एक संवेदशील विधा है जिसे संतुलित और ईमानदारी से लिखना प्रायः हर लेखक के लिये कठिन कार्य होता है।संस्मरण में एक पूरा समकाल समाया रहता है जो किसी व्यक्ति के जीवन के विशिष्ट पहलू को उजागर करता है । अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष त्रिपुरारीलाल शर्मा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि संस्मरण जीवन के दुखद और सुखद घटनाओं का प्रेरक और महत्वपूर्ण घटनाओं का लेखा-जोखा है।इसमें कविताओं के लिए कोई स्थान नहीं होता। यह वास्तविकता पर आधारित लेखन की एक विधा है । कार्यक्रम का प्रारंभ शंखनाद कर मां सरस्वती की वंदना से किया गया जो लगातार 3 घंटे तक चला और इसमें 27 साहित्यकारों ने भाग लिया तथा अपने संस्मरणों को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया ।
कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय साहित्य परिषद महिला इकाई झाबुआ की प्रमुख डॉ अर्चना राठौर, सुनील शर्मा धामनोद, कीर्ति तिवारी बुरहानपुर, सुनील पुरोहित बड़वानी ने किया। झाबुआ जिले भी साहित्यकारों ने संस्मरण सम्मेलन में सहभागिता की जिसमें श्रीमती रेखा वर्मा ने ‘‘फरिश्ता दीदी‘‘ और कोयले की आग का मार्मिक वर्णन सुनाया और गरीबी की भयावहता को दर्शाया। सुश्री किरण देवल ने ‘‘मानवता क्या होती है‘‘ इस पर बहुत ही प्रेरक प्रसंग सुनाया ।डॉ. अर्चना ना राठौर ने ‘‘कर्तव्य का निर्वहन‘‘ संस्मरण प्रस्तुत किया। श्रीमती मंजुला चैहान ने ‘‘अंतिम विदाई‘‘ संस्मरण की बहुत ही सुंदर प्रस्तुति दी। कीर्ति तिवारी बुरहानपुर ने मेरी पहली प्रस्तुति पर अपना संस्कृत सुनाया और श्रीमती मेघा शर्मा इंदौर ने ईश्वर सर्वत्र है पर अपना संस्करण सुना कर ईश्वर सभी की सुनते हैं यह बताया अंत में श्री अनिल शर्मा ने अपनी संगीत यात्रा में अन्यों के सहयोग का वर्णन किया कार्यक्रम का संचालन श्रीमती कीर्ति तिवारी बुरहानपुर अनिल शर्मा धामनोद ने कियासर्वप्रथम सीताराम मालाकार मोदी ने ‘‘खुशी के आंसूू बचा कर‘‘ शिक्षक की भूमिका पर अपना संस्मरण सुनाया, श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘‘शीलू‘‘ जबलपुर ने ‘‘श्रीनगर की यात्रा डल झील की यात्रा‘‘ संस्मरण के माध्यम से करवाई तथा मंदसौर से नंदकिशोर राठौर ने ‘‘आज ही का उजाला‘‘ में अपने छात्र जीवन की सत्यता का वर्णन किया ।धार से श्रीमती पूर्णिमा ने शिक्षकों की भूमिका को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। देवास से दिलीप कुमार शर्मा दीप‘‘ ने वृद्ध जनों के परिवार में महत्व से संबंधित बहुत ही सुंदर संस्मरण प्रस्तुत किया। धार से श्रीमती पुष्प लता ‘‘पुष्प‘‘ ने ‘‘मां वैष्णो देवी के दिव्य दर्शन‘‘ में किस प्रकार उन्होने मां की कृपा का अनुभव किया उसे सुनाया। पूजा ओझा ने ‘‘हम भी कुछ ऐसे थे‘‘ और ‘‘बुजुर्गों का मान‘‘ किस प्रकार रखा जाए इस संस्मरण को बहुत ही संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया।शशिकला अवस्थी इंदौर ने अपनी साहित्यिक यात्रा का बहुत सुंदर वर्णन कर नवोदित साहित्यकारों को प्रेरणा दी। श्रीमती विनीता खंडेलवाल ने अपने जीवन की एक भयावह घटना को ‘‘भरोसा‘‘ शीर्षक से पटल पर रखा। श्रीमती आशा वडनेरे ने प्रशिक्षण काल में घटी एक घटना का वर्णन अपने संस्मरण में कर सभी को स्तब्ध कर दिया। श्रीमती शोभा रानी तिवारी इंदौर ने ‘‘मेरी दक्षिण यात्रा‘‘ पर अपना संस्मरण सुनाया। पूर्णिमा मंडलोई इंदौर ने ‘‘अटल जी के हाथों नर्मदोवतरण‘‘ संस्मरण प्रस्तुत किया।ओमप्रकाश कुशवाहा धामनोद ने अपने संस्मरण में सभी को नर्मदा स्नन का बड़ा सुंदर सजीव चित्रण किया। देवास से श्रीमती प्रतिभा ने ‘‘तू कहां‘‘ सुनाकर लोगों को भावुक कर दिया। देवास से राजू सेंधव ने ‘‘कैंसर पर विजय कैसे प्राप्त की‘‘ इस संस्मरण को सुनाकर सभी को अत्यंत ही भावुक किया।खरगोन से सुरेंद्र खेड़े ने ‘‘आस्था के विजय‘‘ के महत्व को बताया तथा रतलाम से प्रकाश कुमावत ने अपने संस्मरण में जीवन का सार क्या है ये बताया। त्रिपुरारी लाल जी शर्मा ने अपने जीवन की छात्र घटनाओं में की गई गलतियों को स्वीकार कर किस प्रकार क्षमा मांग लेना चाहिए इस पर एक प्रेरक संस्मरण सुनाया।इंदौर से ही शारदा तोमर ने ‘‘डाली के दो फूल‘‘ पर बेटियों से संबंधित संस्मरण प्रस्तुत किया। भोपाल से मधुलिका सक्सेना भोपा ने ‘‘किस्सा चलती रेल में करवा चैथ‘‘ में यात्रियों के सहयोग को प्रदर्शित किया।