संसद में बार-बार क्यों अटक जा रहा महिला आरक्षण का बिल
संसद के पांच दिवसीय विशेष सत्र की शुरुआत आज सोमवार से गई. नए सत्र की शुरुआत से पहले ही राजनीतिक हलकों में यह चर्चा शुरू हो गई कि सरकार महिलाओं को आरक्षण देने वाला बिल पेश कर सकती है. हालांकि इस बारे में सरकार की ओर से कुछ भी नहीं कहा गया है. कांग्रेस की अगुवाई वाले INDIA गठबंधन के साथ-साथ सत्तारुढ़ NDA के कई घटक दलों की ओर से महिला आरक्षण बिल पेश किए जाने की मांग की जा रही है.
दूसरी ओर, कई प्रमुख दलों की ओर से विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश किए जाने की मांग पर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि सही समय पर इस बारे में फैसला लिया जाएगा. संसद के विशेष सत्र में यह बहुचर्चित बिल पेश होगा या नहीं, यह अभी तक साफ नहीं है. लेकिन इस बिल को लेकर चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन यह मामला हर बार लटक जाता है. एक बार फिर यह बिल सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है तो एक नजर इसके सफर पर डालते हैं.
UPA राज में पेश हुआ था बिल
महिलाओं को सदन में 33 फीसदी आरक्षण देने से जुड़ा बिल आखिरी बार मई 2008 को संसद में पेश किया गया था. तब की यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में महिला बिल को शामिल किया था और इसी वादे को पूरा करते हुए राज्यसभा में 6 मई 2008 को बिल पेश किया गया. फिर 9 मई 2008 को इसे कानून और न्याय से संबंधित स्थायी समिति के पास भेज दिया गया.
स्थायी समिति ने लंबी चर्चा के बाद 17 दिसंबर 2009 को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की और इसे पास करने की सिफारिश की. 2 महीने बाद फरवरी 2010 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस सिफारिश को अपनी मंजूरी दे दी. हालांकि संसद में समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने इसका जमकर विरोध किया. और यह बिल अटकता चला गया.
हंगामे के बीच बिल पास, मार्शल का प्रयोग
आखिरकार बिल पेश होने के करीब 2 साल बाद संसद की ऊपरी सदन ने 9 मई 2010 को अपने यहां पास कर दिया. लेकिन राज्यसभा के बाद जब यह बिल लोकसभा पहुंचा तो कभी यह बिल यहां पास ही नहीं हो सका. बिल पास होने की बाट जोहता लोकसभा का कार्यकाल 2014 में पूरा हो गया लेकिन यह बिल अटका ही रहा.
राज्यसभा में भी बिल पास कराना आसान नहीं रहा और सदस्यों के भारी हंगामे के बीच किसी तरह से बिल को पास करा लिया गया था. उग्र हुए सदस्यों को सदन से बाहर निकालने के लिए मार्शल का प्रयोग किया गया और उन्होंने बिल का विरोध करने वाले कुछ सांसदों को सदन से बाहर किया था.
आरक्षण को लेकर किस बात का विरोध
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस की ओर से इस बिल का समर्थन किया जाता रहा है लेकिन अन्य क्षेत्रीय दलों के भारी विरोध और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग समेत कुछ चीजों पर विरोध के चलते इस पर आम सहमति कभी नहीं बन सकी.
साथ ही महिला आरक्षण बिल का विरोध करने वाले दलों की ओर से कहा गया कि इस आरक्षण का फायला सिर्फ शहरी क्षेत्र की महिलाओं को ही मिलेगा. ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की फायदा नहीं होगा और उनकी हिस्सेदारी नहीं हो पाएगी.
विधायी सदनों में महिलाओं की क्या स्थिति
हालांकि संसद और राज्यों के विधानमंडलों में महिलाओं की भागीदारी पर नजर डालें तो पता चलेगा कि लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है तो वहीं कई राज्यों की विधानसभाओं में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है.
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वर्तमान में 543 सदस्यीय लोकसभा में 78 महिला सांसद चुनी गईं, जो 15 फीसदी से भी कम आता है. पिछले साल दिसंबर में सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्यसभा में भी महिलाओं का हिस्सेदारी और भी कम है और यह करीब 14 फीसदी है.
पिछले साल दिसंबर में जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ में है जहां पर 14.44 फीसदी हिस्सेदारी है. जबकि इसके बाद पश्चिम बंगाल में 13.7 फीसदी और झारखंड में 12.35 फीसदी महिला विधायकों के साथ देश में सबसे आगे चल रहे हैं.
जबकि राजधानी दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा जैसे संपन्न राज्यों में भी महिला विधायकों की संख्या 10 से 12 फीसदी ही है. दूसरी ओर, केरल, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना समेत कई राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है.
महिला आरक्षण बिल 2008 में क्या
महिला आरक्षण बिल (The Constitution (108th Amendment) Bill, 2008) के जरिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई सीट आरक्षित करने का प्रावधान किया गया था. साथ ही इन आरक्षित सीटों का आवंटन संसद की ओर से निर्धारित अथॉरिटी की ओर से निर्धारित किया जाना था. इसके अलावा लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए रिजर्व सीट में से एक तिहाई सीट अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए भी आरक्षित किया जाएगा.
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यही नहीं इस बिल में यह भी प्रावधान किया गया था कि आरक्षित सीटों का आवंटन राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिए किया जाएगा. साथ ही इस बिल में यह भी प्रावधान किया गया कि इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण की व्यवस्था खत्म कर दी जाएगी.
साल 2008 और 2010 के असफल प्रयास से पहले, महिला आरक्षण से जुड़ा बिल 1996, 1998 और 1999 में भी पेश किया जा चुका है. महिला आरक्षण बिल सबसे पहली एचडी देवेगौड़ा की सरकार के कार्यकाल में 12 सितंबर 1996 को पेश करने की कोशिश की गई थी. तब भी मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव इस बिल के विरोध में थे. फिर मामला लटकता चला गया. इससे पहले मई 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिलाने को लेकर बिल पास कराने की कोशिश की थी, लेकिन राज्य की कई विधानसभाओं ने इसका भारी विरोध किया और मामला लटक गया. उनकी ओर से विरोध में यह कहा गया कि इससे उनकी शक्तियों में काफी कमी आ जाएगी.