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‘मनकामेश्वर महादेव’ का जलाभिषेक करने से पूरी होती है मनोकामना, मां पार्वती की तपोस्थली है ये मंदिर | Shajapur news mankameshwar mahadev fulfill the Devotee wishes

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'मनकामेश्वर महादेव' का जलाभिषेक करने से पूरी होती है मनोकामना, मां पार्वती की तपोस्थली है ये मंदिर | Shajapur news mankameshwar mahadev fulfill the Devotee wishes

शाजापुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर ग्राम कुम्हारिया खास में स्थित मनकामेश्वर महादेव मंदिर अति प्राचीन और चमत्कारी है. कहते हैं, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती हैं.

भगवान शिव के लिए मां पार्वती ने की थी इस स्थान पर तपस्या

Image Credit source: TV9

मध्यप्रदेश के शाजापुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर ग्राम कुम्हारिया खास में स्थित मनकामेश्वर महादेव मंदिर अति प्राचीन और चमत्कारी है. कहते हैं, यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती हैं, जिसकी वजह से इस मंदिर को मनकामेश्वर महादेव कहा गया है. यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है. सावन के तीसरे सोमवार भक्त मंदिर में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की पूचा अर्चना कर रहे हैं. पुजारी का कहना है कि मंदिर के बारे में ये मान्यता है कि करीब 750 वर्ष पहले यहां एक गाय मिट्टी का दुग्धाभिषेक करती थी.

ग्रामीणों ने जब इस स्थान की खुदाई की तो नीचे से शिवलिंग निकला, जो कि आज मनकामश्वेर महादेव के रूप में मंदिर विराजमान हैं. मुकुटमंदिर के पुजारी ने कहा कि यहां पर जो मुकुट लगा हुआ है. वो ग्वालियर स्टेट के द्वारा वर्षों पहले चढ़ाया गया था. उन्होंने कहा कि ग्वालियर स्टेट से 3 मुकुट दिए गए थे. एक उज्जैन महाकालेश्वर में, एक ओमकारेश्वर में और एक मनकामेश्वर में है.

भक्तों की हर मनोकामना होती है पूरी

पुरी मंदिर के पुजारी ने कहा कि यहां पर भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है. यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग यहां पर दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर के पास एक गौरीकुंड बना हुआ है. उसमें झरना है और इस झरने में 12 महीने पानी आता रहता है. गौरी कुंड में स्नान करने के बाद भगवान से जो भी मांगा जाता है. मनकामेश्वर महादेव वह मनोकामना पूरी करते हैं.

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भगवान शंकर के लिए पार्वती ने यहां की थी तपस्या

इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता के मुताबिक भगवान शंकर के लिए पार्वती ने इस क्षेत्र में तपस्या की थी. इसलिए इस जगह को माता पार्वती की तपोभूमि भी कहा जाता है. मंदिर में एक शिलालेख भी अंकित है जिसकी भाषा शेली को अभी तक अभी तक कोई भी नहीं पढ़ पाया है.