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बस एक ‘जिंदगी’ के लिए… 350KM ग्रीन कॉरिडोर बनाया, शिवराज ने अपना चॉपर तक दिया | 350 km green corridor built from Jabalpur to bhopal for liver transplant stwas

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जबलपुर से ब्रेनडेड मरीज के अंगों को भोपाल ले जाया जा रहा है.Image Credit source: TV9

जिंदगी के आखिरी पलों में दूसरों को नई जिंदगी देने की हसरत कम लोगों में ही देखने को मिलती है. जबलपुर के एक निजी अस्पताल मेट्रो हॉस्पिटल में ब्रेन डेड 64 साल के एक बुजुर्ग मरीज के परिजनों ने जिंदगी के आखिरी पलों में दूसरों की जिंदगी बचाने की ऐसी ही पहल कर इंसानियत की मिसाल पेश की है. मरीज के परिजनों के द्वारा अंगदान की इच्छा जताने के बाद जबलपुर से लेकर भोपाल तक में ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया. जबलपुर के निजी अस्पताल से ग्रीन कॉरिडोर बनाकर मरीज के अंगों को भोपाल के लिए रवाना किया गया.

दिलचस्प बात तो यह है कि जबलपुर के मरीज का लीवर भोपाल के बंसल अस्पताल में भर्ती दूसरे मरीज देवास निवासी दिनेश चंद्र तिवारी को ट्रांसप्लांट किया जाएगा. इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना हेलीकॉप्टर भी मुहैया कराया है, लेकिन मौसम की खराबी के चलते सड़क मार्ग से भोपाल ले जाया जा रहा है. बंसल अस्पताल के विशेषज्ञ डॉ. गुरसागर सिंह सहोता के साथ पांच सदस्यीय डॉक्टरों की टीम इसी हेलीकॉप्टर के जरिए भोपाल से जबलपुर पहुंच और ढाई घंटे तक चले ऑपरेशन के बाद शरीर के अंगों को निकल गया. अब भोपाल में उन्हें ट्रांसप्लांट किया जाएगा.

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डॉक्टर की टीम ने राजेश सराफ के शरीर से लिवर-किडनी को निकाला है, जिन्हें भोपाल ले जाया जा रहा है. इसके साथ ही आंखों को भी निकाला गया है, उसे भी ट्रांसप्लांट किया जाएगा. दरअसल, भोपाल में प्राइवेट काम करने वाले 64 साल के बुजुर्ग राजेश सराफ को मार्च महीने में ब्रेन ट्यूमर डिटेक्ट हुआ था. कई डॉक्टरों से इलाज कराने के बावजूद भी उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ और नागपुर में डॉक्टरों ने कह दिया कि 64 साल के बुजुर्ग मरीज अब महज 6 महीने तक ही जिंदा रह सकते हैं.

परिजनों ने मरीज के अंगों को दान करने की इच्छा जताई

ऐसे में वे भोपाल से शिफ्ट होकर जबलपुर के विजयनगर में रहने वाले अपने भांजे पीयूष सराफ के घर आ गए. इस बीच 19 सितंबर को उनकी हालत खराब होने लगी. तब परिजनों ने उन्हें जबलपुर के मेट्रो अस्पताल में भर्ती कराया. इलाज के दौरान 64 साल के मरीज राजेश सराफ का ब्रेन काम करना बंद कर दिया, जिसके बाद परिजनों से उनके अंगों को दान करने की इच्छा जताई. इसकी जानकारी अस्पताल को दी गई, जिसके बाद ऐसे मरीज की खोज भी की गई, जिन्हें मानव अंगों की जरूरत है और उनकी उपलब्धता के बाद मरीज को नई जिंदगी मिलेगी.

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विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में होगा लीवर ट्रांसप्लांट

अंगदान की पूरी प्रक्रिया नेशनल ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन यानी NOTTO के जरिए पूरी कराई गई. अनुमति मिलने के बाद भोपाल के बंसल अस्पताल से लेकर जबलपुर के मेट्रो अस्पताल तक ग्रीन कॉरिडोर का निर्माण किया गया और विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में मरीज का लीवर, किडनी और आंखें निकालकर विशेष हेलीकॉप्टर के जरिए भोपाल के लिए रवाना किया जाना था, लेकिन मौसम के खराबी के कारण सड़क मार्ग से इसे भोपाल ले जाया जा रहा है. वहीं परिजनों का कहना है कि वह अपने आप को खुश नसीब मानते हैं कि उनके अंग अब किसी और में देखने को मिलेंगे.