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जातीय जनगणना का झोल आया बाहर, अब जेडीयू के भीतर से ही उठी आवाज, अंतिम शस्त्र भी कारगर नहीं ! | Bihar caste census voice has been raised from within JDU what will do nitish kumar

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बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़ों पर सवाल उठने लगे हैं.

जातिय जनगणना से कई जातियां खुश नहीं हैं. जेडीयू के भीतर ही प्रदेश महासचिव ने जाति गिनने के तौर तरीकों पर सवाल उठा दिया है. ऐसे में अन्य जातियों द्वारा उठाई गई मांग धरातल पर जोर पकड़ने लगी है. सवाल उठने लगे हैं कि नीतीश और लालू प्रसाद का अंतिम अस्त्र कारगर होने से पहले ही टांय टांय फिस्स साबित होने लगा है.

राजनीति की रणनीति में महारथी कहे जाने वाले प्रशांत किशोर ने इसे नीतीश कुमार सरकार का अंतिम अस्त्र कहा है. जाहिर है प्रशांत किशोर मानते हैं कि ये धरातल पर जेडीयू के पक्ष में नहीं गया तो जेडीयू का बिखरना तय है. दरअसल प्रशांत किशोर लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि जेडीयू की स्थितियां बिहार में बद से बदतर हो चुकी है. जाति जनगणना को लेकर नीतीश कुमार का दांव फेल हुआ तो नीतीश राजनीतिक अस्थिरता के परफेक्ट उदाहरण बनने की वजह से लोकसभा में चार सीटें जीत पाने में भी सफल नहीं हो सकेंगे.

ओबीसी को गोलबंद करने का प्रयास

दरअसल ओबीसी को गोलबंद करने के लिए जातीय जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है जो ओबीसी और ईबीसी में गहरी नाराजगी का सबब बनने लगी है. जेडीयू के प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता ने धानुक जाति की आबादी को लेकर सीएम नीतीश कुमार से अपनी नाराजगी व्यक्त कर दी है. ऐसी जातियों में कुशवाहा,पासवान, भूमिहार और कायस्थ समाज के लोग सहित अति पिछड़े समाज के भी कई जातियां हैं जो जाति जनगणना के मेकेनिज्म पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं. ऐसे में नीतीश सरकार में कोर्स करेक्शन को लेकर भी अशोक चौधरी सरीखे मंत्री बयान देने लगे हैं.

जेडीयू में टूट को लेकर क्यों चल रही है बात ?

दरअसल ईबीसी बनाम ओबीसी की लड़ाई में लोगों के निशाने पर कुर्मी और यादव समाज के लोग हैं. ये संख्या में 18 फीसदी से कम हैं लेकिन बिहार में 33 सालों से इनका राज है. इसलिए ईबीसी सहित ओबीसी में सत्ता से वंचित समाज अपनी संख्या की गिणती में नाराजगी के अलावा सत्ता में भागीदारी को लेकर आवाज बुलंद करने लगा है. यादव समाज के एमएलए से लेकर मंत्रियों की संख्या तक पर आवाज उठने लगी है. इसलिए जीतन राम मांझी सरीखे नेता कई मंत्रियों को रिजाइन कराकर संख्या के हिसाब से सत्ता में भागीदारी की बात कहने लगे हैं.

जाहिर है ऐसी मांग के बाद नीतीश और लालू की सरकार दबाव में है वहीं लोकसभा में सीटों के बंटवारे को लेकर असमंजस की स्थिति वर्तमान जेडीयू सांसदों को असमंजस की स्थितियों में डाले हुए है. कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार का स्वास्थ भी सवालों के घेरे में है. कई कार्यक्रमों में कुछ लोगों के पैर छूने की उनकी आदत इन दिनों सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है. इसलिए जेडीयू के छोटे और बड़े नेताओं में पार्टी के भविष्य और खुद के भविष्य को लेकर चिंता की लकीरें मोटी होने लगी है.

सीट शेयरिंग और सत्ता हस्तांतरण को लेकर विवाद तय ?

नीतीश 16 वर्तमान सांसदों वाली सीट पर हर हाल में लड़ना चाहते हैं लेकिन आरजेडी गोपालगंज, छपरा,सीवान, औरंगाबाद,मधेपुरा, कटिहार और बांका अपने कोटे में चाहती है. ऐसे में यहां के सांसदों ने जेडीयू से बाहर भी अन्य दलों से संपर्क साधा हुआ है. कांग्रेस और लेफ्ट भी बिहार प्रदेश में कई सीटों पर अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए हैं. जाहिर है आरजेडी कांग्रेस से संपर्क में है और पांच राज्यों में चुनाव परिणाम के बाद पत्ते खोलने को लेकर मन बना चुकी है. ऐसे में नीतीश कुमार की पार्टी में दो धड़ा अलग अलग रास्ते पर चलने को लेकर मन बना चुका है. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद जेडीयू सत्ता हस्तांतरित करने से परहेज करती है तो आरजेडी भी चुप बैठने वाली नहीं है. ऐसे में सत्ता से बेदखल होने के बाद या फिर बीजेपी के पाले में जाने की ओर नीतीश कुमार फैसला करेंगे इसको लेकर पार्टी के भीतर उहापोह की स्थिती है. ज़ाहिर है जातिय जनगणना सर्वे के बाद आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट आने की उम्मीद है और इसके बाद बिहार की सियासत में कई नाटकीय परिवर्तन हो सकते हैं.