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इस मंदिर में रात बिताते हैं शिव पार्वती, सोने से पहले खलते हैं चौसर; पुराणों में भी ओंकारेश्वर का वर्णन | khandwa news shiva parvati play chaucer dice before sleeping glory of temple is also described in puranas

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इस मंदिर में रात बिताते हैं शिव-पार्वती, सोने से पहले खलते हैं चौसर; पुराणों में भी ओंकारेश्वर का वर्णन

मंदिर के पुजारी रमेश चन्द्र ने बताया कि शयन आरती के पहले ओम्कारेश्वर मंदिर में ज्योर्तिलिंग के सामने प्रतिदिन चौपड़ बिछाकर उसकी गोटे और पासे यथास्थान रखे जाते है. शतरंज के समान इस प्राचीन खेल मे चौकोर सफेद काले बॉक्स होते है.

यहां आज भी रात में शिव-पार्वती खेलते हैं चौसर.

Image Credit source: tv 9

मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर मंदिर में आज भी रात में शिव-पार्वती चौसर खेलते हैं. जहां हर साल शिवरात्रि पर यह चौसर बदली जाती है. फिर साल भर गर्भगृह में रोज रात शिव और पार्वती के लिए चौसर-पासे की बिसात बिछाई जाती है.दरअसल, ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भगवान शिव की सुबह मध्य और शाम को तीन प्रहरों की आरती होती है . ओम्कारेश्वर में तीन पुरियां है ,शिवपुरी ,विष्णुपुरी और ब्रह्मपुरी. इनके कारण ही यहां तीन पहर की आरती का नियम है. शयन कालीन आरती खास मानी जाती है. इस आरती के दौरान खुद भोलेनाथ उपस्थित रहते है. आरती के बाद शयन आसन में शिव-पार्वती की चौपड़ सजती है.

अनादिकाल से मंदिर के पुजारी इस परम्परा का निर्वहन कर रहे है. यहां विशेष धार्मिक अवसरों पर भगवान शिव , माता पार्वती के साथ आकर चौपड़ खेलते है. मंदिर के पुजारी रमेश चन्द्र ने बताया कि शयन आरती के पहले ओम्कारेश्वर मंदिर में ज्योर्तिलिंग के सामने प्रतिदिन चौपड़ बिछाकर उसकी गोटे और पासे यथास्थान रखे जाते है. शतरंज के समान इस प्राचीन खेल मे चौकोर सफेद काले बॉक्स होते है. जिस पर गोट जमाई जाती है. ओंकारेश्वर की आरती पश्चात मंदिर के द्वार पर लगाए जाने वाले ताले की भी पूजा की जाती है .मंदिर को ताला लगाकर बंद कर दिया जाता है.

तीन लोक का भ्रमण कर रात्रि विश्राम करते महादेव

इस दौरान रात में किसी भी व्यक्ति को मंदिर में अंदर रहने की इजाजत नहीं होती है. जब दूसरे दिन ब्रम्ह मुहु्र्त में मंदिर के जब पट खोले जाते है. तो चौपड़ पर रखी गोटे और पासे इस प्रकार से बिखरे मिलते है की जैसे उसे खेला गया हो. बताया जाता है कि, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थल है. जहां हर रात भगवान शिव और माता पार्वती आते है. उसके बाद चौसर खेलते है. चौपड़ बिछाने की यह परम्परा तब से है जब से मन्दिर अस्तित्व में है. यानि पिछले कई सालों से यह परम्परा लगातार जारी है. हालांकि,मन्दिर के सेवारत पुजारियों का मानना है कि यहां भगवान शिव और माता पार्वती आकर चौपड़ खेलते है.

भगवान भोलेनाथ के दर्शन और मां नर्मदा के स्नान का महत्व

मन्दिर के पुजारी के अनुसार, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर के नाम से है.जैसे उज्जैन के महाकाल में भस्म आरती का महत्व है. ठीक वैसे ही यहां ओंकारेश्वर में शयन आरती का महत्व है. ये तपस्थली राजा मान्धाता की रही है. यहां पर चौसर पासे की दो सेज लगती है.

माँ की सेज और भोलेनाथ की सेज दो सेज लगती है. जहां भोलेनाथ की इच्छा हो , अथवा मां की इच्छा हो . वहां वे चौसर पासे खेलते है. मन्दिर के मेन ट्रस्टी और राजा मांधाता के वंशज राव देवेन्द्र सिंह का कहना है कि बारह ज्योतिर्लिंग में ओंकारेश्वर का चौथा स्थान है .यहां पर भगवान भोलेनाथ के दर्शन और मां नर्मदा में स्नान करने का बड़ा महत्व है. यहाँ का प्राकृतिक दृश्य भी मनोहारी है.

क्या है पौराणिक परंपरा?

मन्दिर के पुजारी का कहना है कि, यह मन्दिर किवदन्ती अनुसार पांडवों द्वारा निर्मित है. राजा राम से पहले राजा मान्धाता हुए है. जिनकी तपस्या से शिवलिंग प्रकट हुए और पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान यहां आकर इस मन्दिर का निर्माण किया . जिसको पांच हजार साल बीत चुके हैं.

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उसके बाद पवार वंश , परमार वंश , होल्कर , सिंधिया इनके जो साम्राज्य रहे हैं. उन्होंने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार किया. मन्दिर के सुबह की आरती करने वाले पुजारी ने बताया की सायंकाल भगवान की शयन आरती के बाद भगवान के पलंग पर चौसर बिछाई जाकर उसपर पासे रखे जाते है. भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती यहा आकर चौसर पासे खेलकर गये हैं. चौसर पासे बिखरे मिलते है.