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भारत का बहुत बड़ा कदम, पाकिस्तान को जाने वाला पानी रोका

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नई दिल्ली : पुलवामा में आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान को सख्त संदेश देने के लिए भारत एक-एक कर उसके खिलाफ कदम उठा रहा है। भारत ने सबसे पहले पाकिस्तान से एमएफएन का दर्जा वापस लिया और फिर वहां से आयात होने वाली वस्तुओं पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाकर 200 प्रतिशत कर दिया। भारत ने मुजफ्फराबाद बस सेवा भी बंद की है। इन सबके बीच भारत ने गुरुवार को बड़ा कदम उठाया और सिंधु जल समझौते के तहत तीन नदियों रावी, सतलज और व्यास से पाकिस्तान को मिलने वाले अपने हिस्से का पानी रोकने का फैसला किया। भारत सरकार के इस फैसले के बाद यह तय माना जा रहा है कि इसका असर पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र पर पड़ेगा।

 

बता दें कि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्‍तान के बीच सिंधु जल संधि पर हस्‍ताक्षर हुए थे। विश्‍व बैंक के हस्‍तक्षेप से दोनों देशों के बीच यह संधि हुई थी। इस समझौते के तहत सिंधु नदी घाटी की नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया। समझौते के मुताबिक सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों (पश्चिमी नदियों) के पानी को पाकिस्तान के लिए दिया गया, जबकि रावी, ब्यास और सतलज नदियों (पूर्वी नदियों) का पानी भारत के लिए तय किया गया। दरअसल, भारत अब तक अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान में बहने देता था लेकिन सरकार ने अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला किया है।

 

सिंधु जल समझौते के तहत भारत बिजली बनाने और कृषि कार्यों के लिए भी पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल कर सकता है। भारत ने कहा है कि वह अब पूर्वी नदियों पर डैम बनाकर अपने हिस्से का पानी के इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर और पंजाब बन रही बिजली परियोजनाओं के लिए करेगा। पंजाब और जम्मू-कश्मीर में कई बिजली परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। इन राज्यों के बाद जो पानी बचेगा उसे राजस्थान और अन्य राज्यों को दिया जाएगा।

 

जाहिर है कि सरकार के इस फैसले का असर पाकिस्तान और उसके कृषि व्यवस्था पर पड़ेगा। पाकिस्तान अब तक भारत के हिस्से के पानी का इस्तेमाल अपने कृषि के लिए करता आया है लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर सकेगा। पानी पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र के बाद कृषि दूसरा सबसे बड़ा घटक है और यह उसके जीडीपी का करीब 21 प्रतिशत है। सिंधु जल समझौते की नदियां पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था की रीढ़ मानी जाती हैं।

 

पाकिस्तान के मैदानी भागों की सिंचाई रावी, सतलज, व्यास और इसकी सहायक नदियों पर पूरी तरह निर्भर है। इन नदियों में पानी नहीं होने पर देश के अधिकांश हिस्से सिंचाई से वंचित रह जाएंगे और कृषि उत्पादन ठप हो जाएगा। पाकिस्तान के जितने भागों में कृषि होती है उसके करीब 80 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई इन तीन नदियों से होती है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों से सिंचित होने वाला यह क्षेत्र पाकिस्तान की खाद्य जरूरतों का 90 प्रतिशत आपूर्ति करता है।

 

सिंधु जल समझौते की नदियां हिमालय से निकलकर अरब सागर की तरफ बहती हैं। पाकिस्तान में 45 प्रतिशत मजदूरों का रोजगार कृषि कार्यों से जुड़ा है। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का पूरी कृषि व्यवस्था इन तीन नदियों पर आधारित है। पंजाब बड़े पैमाने पर गेहूं की खेती होती है जबकि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान को इन नदियों का बेहद कम हिस्सा मिल पाता है।

 

जाहिर है कि पानी के अभाव में पाकिस्तान की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा जाएगी। यहां तक कि उस पर खाद्यान्न संकट भी गहरा सकता है। भारत के इस कदम के खिलाफ पाकिस्तान विश्व बैंक का दरवाजा खटखटा सकता है लेकिन वहां से भी उसे निराशा ही हाथ लगेगी क्योंकि भारत ने किसी संधि का उल्लंघन नहीं किया है बल्कि एक व्यावहारिक कदम उठाते हुए अपने हिस्से का पानी रोका है।

 

 

 

गड़करी ने ट्वीट कर कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में  हमारी सरकार ने निर्णय लिया है कि हम पाकिस्तान को दिए जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकेंगे।  इस पानी को पूर्वी नदियों और सप्लाई के जरिए जम्मू-कश्मीर और पंजाब के लोगों के लिए भेजा जाएगा। रावी नदी पर शाहपुर- कांडी डैम का निर्माण शुरू हो चुका है। यूजीएच परियोजना हमारे हिस्से के पानी को स्टोर करेगी। सभी परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया है।’  गडकरी ने कहा है कि इन तीनों नदियों पर बने प्रॉजेक्ट्स की मदद से पाक को दिए जा रहे पानी को अब पंजाब और जम्मू-कश्मीर की नदियों में प्रवाहित किया जाएगा।